गेवाड का प्रसिद्ध सोमनाथ मेला

       बताया जाता है कि कभी सोमनाथ का मेला कुमाऊं का प्राचीन  सबसे बड़ा व्यापारिक मेला माना जाता था पुराने लोग बताते हैं कि कुमाऊं का सोमनाथ  गड़वाल का कांडा मेला सबसे बड़े मेले थे सोमनाथ का मेला प्रारंभ में दस पंद्रह दिन का चलता था उस समय मासी में बाजार  दुकाने  के बराबर थी यद्यपि कत्युरी  चन्द राजाओं ने अपनी सेना या अपनी प्रजा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हाट  बाजार बसाये थे काशीपुरमुरादाबादगडवाल के व्यापारी घोड़ों  खच्चरों  कुलियों के द्वारा अपना सामान बेचने के लिए सोमनाथ के मेले में उस समय  रामनगर नहीं बसा हुआ थापहाड़ के लोग उस समय साल भर का आवश्यक सामान मेले में सामान खरीदने के साथ साथ अपने मित्रों व परिचितों से मिलने के लिए भी आते थे। उस समय यातायात के साधन नही थे। उस युग में मेले ही संचार, मनोरंजन, मेल मिलाप व आपसी सम्बन्ध बनाने के साधन थे। मेरा मानना है कि सोमानाथ का मेला आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व उत्तरकालीन चन्द राजाओं के शासन कल  में प्रारंभ  हुआ  होगा। 
सोमनाथ  मेला का अपना एक  इतिहास  है 

सोमनाथ  मेला का इतिहास :-

               सोमनाथ भगवान  शंकर का पर्यायवाची नाम है । सोमनाथेश्वर नमक स्थान पर झाड़ियों के बीच एक गुफा के अन्दर शिवलिंग की प्राप्ति हुई थी । तब वहां पर कानोडिया राजपूतों ने एक शिवालय का निर्माण करवाया था ।उस की पूजा अर्चना का दायित्व आदिग्राम के फुलोरिया ब्राह्मणों को सौंपा गया था । प्रति वर्ष बैशाख मास की पूर्णिमा को यहाँ पर मेला लगने लगा । जिसे भटोली का सोमनाथ कहा जाता था । कत्युरी शासन काल  में चन्द व गोरखों का  शासन काल  में  पाली व मासी का कुमाऊं के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रहा है । पाली उस समय पाली पछाऊं परगने का मुख्यालय था । मासी व पाली के आस पास अनेक युद्ध हुए थे । इस परिक्षेत्र में गेवाड के अन्य स्थानों की अपेक्षा आबादी भी अधिक थी क्योंकि उस समय लोग ऊंचाई वाले स्थान पर बसते थे । मैदानी भाग में बहुत अधिक गर्मी पड़ती थी । घाम व मलेरिया का प्रकोप उस समय जादा था।   प्रारंभिक काल में कन्नौज से दो परिवार (1)कनोडिया (2) कुलाल परिवार, तल्ला गेवाड मासी में बस गये । कनोडिया राजपूत, रामगंगा के दांये क्षेत्र में और कुलाल राजपूत रामगंगा के बांये क्षेत्र में बस गये । धीरे-धीरे मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों से अन्य जातियां आकर इस क्षेत्र में बसने लगे । कनौडी राजपूतों का इस क्षेत्र  से बड़ा दबदबा था । कुलाल राजपूत भी उन्हीं के समकक्ष प्रभाव रखते थे । उस समय इस क्षेत्र को बमोर प्रदेश कहा जाता था। प्रारंभ में इन दोनों जातियों में बड़ी मित्रता  थी । बाद में किसी कारणवश यह मित्रता शत्रुता में बदल गई। इसी बीच कन्नौज से एक कान्यकुब्जी ब्राहमण मिश्रा जिस का नाम रामदास था । बद्रीनाथ से लौटते समय मासी में बस गया आज भी उस स्थान को रामदास कहते हैं । बाद में रामदास ने यहीं अपना विवाह कर लिया और उसका वंश बड़ने लगा आज उसी के वंशज मासी में रहने के कारण मासीवाल कहलाने लगे ।
             इसके बाद जब कुलाल राजपूतों ने कनौडिया राजपूतों का प्रतिरोध किया तो कनौडिया ने संगठित होकर कुलाल वंश के मुखिया को मार गिराया और कुलाल वंश को मासी छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा । कुलाल राजपूतों ने मासी छोड़ते समय अपने मित्र रामदास को अपनी सारी संपत्ति अपने क्षेत्र का स्वामित्व प्रदान कर दिया कुलाल वंश मासी छोड़ने के बाद सल्ट क्षेत्र में बस गये । कुलाल वंशियों को को मासी व सोमनाथ मेले की याद सताती रहती थी । जब कुमाऊं में अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हुआ तब उन्होंने चौना से लेकर डांग तक तक के गांवों का थोकदार बना दिया । इधर मासीवाल लोगों ने भी अपनी बुद्धिमत्ता से मासी और ऊंचावाहन, नौगांव, कवडोला, टीमरा, झुडंगा आदि नौ गांवों पर थोकदारी प्राप्त कर ली जिसके फल स्वरुप कनौडी व मसीवाल में प्रतिद्धदिबड़ने  लगी ।
                एक वर्ष सोमनाथ मेले के अवसर पर सल्ट के कुलाल वंश के एक नवयुवक सोबन सिंह कुलाल उम्र 20 वर्ष ने अपनी माँ से सोमनाथ में जाने की इच्छा व्यक्त की तब उसकी माँ ने अपने बेटे को मेले में जाने से मना कर दिया। तब उसने अपनी माँ से मेले में जाने से मना करने का कारण पूछा। उस की माँ ने अपने बेटे को उसके पूर्वजों का पुराना इतिहास बताया। कुलाल वंश को मासी से भगाने व मारने में कनौडियों राजपूतों का हाथ था । यदि उन्हें पता चल जाये की तुम कुलाल वंशी हो तो वे तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। तब उसने अपनी माँ से प्रतिज्ञां की कि वह पूर्वजों का बदला अवश्य लेगा। माँ ने अपने बेटे को आशीर्वाद दिया और उसे बताया कि वहाँ पर हमारे मित्र मासीवाल हैं वह तुम्हारी सहायता करगें । जब वह सोमनाथ मेले को जा रहा था तब उसे रास्ते में ऐराड़ी के गायककार (हुडिकिये) मिल गये जो कनौडियों के यश  गीत गाते थे, तब सोबन सिंह ने उनको अपनी व्यथा सुनाई और उनसे घनिष्टता बड़ा ली । हुडकिये ने भी उसे मदद का भरोसा दिलाया और वह सबसे पहले मासी आकर,  मासीवाल  लोगों के घर गया उनको अपना परिचय दिया मंत्रणा कि और उनसे मदद मांगी। मसीवाल लोगों ने उसे सकुशल सल्ट पहुँचाने का आश्वासन दिया। सोबन सिंह मासी से तलवार लेकर हुडकिये को सौंप आया। सोमनाथ के दिन हुडकियों ने यह तलवार अपने गुदड़ी में छिपा रखी थी । नाच गाने के वक्त हुडकिया मलदेव कनौडिया के यश गीत गा रहे थे। हुडकिये के इशारे पर सोबन सिंह कुलाल ने अपनी तलवार से मलदेव कनौडिया को मौत के घाट उतार दिया। और सवयं मासी की और भाग गया उस के पीछे सोमनाथ का का पूरा मेला मासी की ओर उमड़ पड़ा। तब से भटोली का सोमनाथ मासी आ गया । सोबन सिंह कुलाल सकुशल सल्ट को लौट गया और इस मदत के लिए मासीवालों को धन्यवाद दिया और यह भी बचन दिया कि वह प्रतिवर्ष अपने दल बल व ढोल नगाडों के साथ सोमनाथ मेले के पहले दिन मासी पहुंचेगा और मासीवालों का साथ देगा। दुसरे वर्ष वह साल्ट थोक से 22 जोड़े नगाड़ों, पताकाओं, मेलार्थियों, हुडकियों व गायकों के साथ मासी पहुंचा तब से प्रतिवर्ष सोमनाथ के पहले दिन एक बड़ा दिन रात का मेला मासी में लगने लगा और यह मेला सल्टिया कहलाया क्योंकि इस मेले में अधिकतर सल्ट से आते थे। दुसरे दिन सोमनाथ मेले में मासीवाल व कनौडिया में ओडा भेटने  की रश्म होती थी तब उस समय मासीवाल थोक के नौ जोड़ी नगाड़ों व मेलार्थी वापस लौट जाते थे । मासी में सोमनाथ चौंरी में मासीवाल व कनौडियों के डेरे बनाये गये, लेकिन एक साथ ओडा भेंटने की रश्म होने से खून खराबा होने का अंदेशा बना रहता था।
          बाद में यह विवाद अंग्रेज मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। अंग्रेज मजिस्ट्रेट ने यह फैसला दिया कि एक साल मासीवाल पहला ओडा भेटेगा तथा दुसरे साल कनौडिया थोक पहले ओडा भेटेगा। तब से आज तक सोमनाथ मेले में यही परम्परा चली आ रही है । 
मासी सोमनाथ मेले की यह जानकारी श्री नंदन सिंह बिष्ट जी के रंगीलो गेवाड़ पुस्तक से लिया  गया है 

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