अपनी जन्मभूमि से बिछड़ने का दुःख

                    गेवाड घाटी अल्मोड़ा चौखुटिया विकास खण्ड में तडगताल, नैगड़, जौरासी, नैथना, मासी तक का पूरा क्षेत्र गेवाड घाटी के अंतर्गत आता है । इसी गेवाड घाटी की मैं अपनी 20 वर्ष की यादों को समेटे हुए हूँ।  अपनी जन्मभूमि को याद कर प्रदेश में रह रहा हूँ । कास वो दिन वो यादें फिर लौट कर आते । बचपन का वो उछल कूद करना इस गांव से उस गाँव तक अपने सखे-मित्रों के साथ घुमने निकलजाना । आज सिर्फ एक यादें ही बसी हुई है । 20  वर्ष तक की आयु तक मैं अपने इस गेवाड घाटी भूमि में रहा । कुछ समय बाद में आपनी रोजी रोटी कमाने के लिए आपनी माँ मेरी जन्मभूमि को छोड़कर प्रदेश के लिए निकल पड़ा । मुझे लगता है जो दुःख मुझे हुआ था अपने घाटी से वह दुःख लगभग सभी ने महशुस किया होगा जो भी आपने घर से निकलकर दूर-दरार शहर को निकले समय । पर मेरी हालत कुछ इस प्रकार थी । जैसे इक बच्चा आपनी माँ की गोद में बहुत समय से खेल रहा हो, माँ को कुछ और कम की याद आये तो अपने बालक को छोड़कर कर जाना । लेकिन यहाँ पर आपनी जन्म भूमि को छोड़कर में जा रहा था । एसा लग रहा था कि जैसे - बालक आपनी माँ बिना रह नहीं सकता । पर मुजबुरी इन्शान से क्या न कराती, इस करण से मुझे भी जाना पड़ा । अपने गांव, आपनी घाटी, अपना पहाड़ छोड़ने का दुःख क्या होता है आप जानते ही होंगे । कुछ समय पश्यात प्रदेश में अच्छा  लगने लगा यहाँ की चकाचौद । कुछ समय गुजर जाने के बाद फिर मुझे आपने गांव की याद माँ की याद आने लगी । मन करता सबकुछ छोड़ कर अपने गांव में ही रहूँ । बार बार मुझे आपनी माँ -पिताजी की दुखों को देखते हुए फिर असमंजस में पड़ जाता हूँ । मैं नयाँ-नयाँ प्रदेश में आया हुआ था । मुझे कुछ भी मालूम नहीं, हर चीज से अनजान था । कुछ समय गुजर जाने के बाद मुझे एक इसे व्यक्ति से मेरी मुलाकात हुई जो मेरी जन्मभूमि गेवाड़ घाटी को बहुत कुछ समझते थे । मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई उन व्यक्ति से मिलकर । बहुत कुछ बताया मुझे गेवाड़ घाटी के बारे में और में भी उत्सुक था जानने के लिए । उन महोदय का मिलना मेरा पाने पहाड़ के प्रति और भी लगाव बढ़ना । जब उन्होंने मुझे अपने गेवाड घाटी के बारे में बताया में एक दम हचक हो गया । उन्होंने मुझे कहा आप के गेवाड घाटी को रंगीलो गेवाड या नवरंगी  गेवाड के नाम से भी जाना जाता है । मैंने पूछा गेवाड घाटी का नाम रंगेलो गेवाड या नवरंगी गेवाड पढ़ा क्यूँ इस के पीछे का क्या इतिहाश रहा है ? फिर मुझे उन्होंने गेवाड घाटी के पूर्व कुछ रहस्य बताए । गेवाड घाटी का नाम रंगेलो गेवाड और नवरंगी गेवाड कैसे पड़ा ?


चौखुटिया विकाश खण्ड (रंगेलो गेवाड़ घाटी) का मानचित्र 
रंगीलो गेवाड -
                     रंगीलो गेवाड का रहस्य बड़ा ही सुन्दर और दिलचस्प है । ये बहुत ही लोकप्रिय और एक अजर अमर प्रेम कहानी है । 
                             गेवाड घाटी का यह अद्भुत प्रेम कथा आज से लगभग 500 -600 वर्ष  पुरानी है  यहाँ एक समय कत्यूरियों का साम्राज्य हुआ करता था । गेवाड घाटी में 14  राजाओं ने वैराठ राज्य में  राज किया । इसी वंश के अंत में पृथ्वी देवपाल राजा हुए । इन की पहली पत्नी जियारानी से धाम देव और दूसरी पत्नी धर्मा देवी से मालूशाही हुए । मालूशाही को वैराठ का राजा बनाया गया । यहीं से राजुला मालूशाही की अमर प्रेम गाथा का उद्गम हुआ  । मालूशाही  का नाम और एश्वर्य जब चारोँ ओर फ़ैलाने लगा । इसी बिच राजुला का सौन्दर्य भी चारोँ ओर फैलने लगी । 

एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि

” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”

उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”

तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना।


"मिकणी बिवाय बाबू, पाली पछाऊं का देश ।

पाली पछाऊं का देश म, रंगेलो गेवाडा ।

रंगीलो गेवाडा म , रंगीलो वेरठा।

मिकणी बिवाय बाबू , रंगेलो गेवाडा । "
 इस प्रकार गेवाड घाटी रंगीलो गेवाड घाटी के नाम से भी विख्यात हुआ ।

नवरंगी गेवाड घाटी :-
                                           वरंगी गेवाड घाटी  का भी एक अद्भुत दृश्य व एक बहुत ही प्रयत्न शील घाटी रही है । माना जाता है कि जब अंग्रेजी हुकूमत थी उस समय इस का नाम नवरंगी गेवाड पड़ा था, इसका नाम अंग्रेजों ने नहीं रखा बल्कि आने जाने वाले पथिकों ने इसे ये नाम दिया है । गेवाड घाटी की तलाई भूमि है यह पहले बंजर भूमि थी । यहाँ कुछ भी अनाज नहीं उगाया जाता था । अंग्रेजों ने आकर इस बंजर भूमि को खुदवाकर यहाँ गेहूं व्  चावल की खेती उग्वाना शुरू किया । मैं आज भी इक बात से अंजान हूँ लोगों का कहना है है अंग्रेजों ने भारत को लुटा इस बात को में जनता नही हूँ पर में इक बात जनता हूँ अंग्रेजों ने हमें जीना सिखाया । हालाँकि यह सच है कि अंग्रेजों ने सताया बहुत पर आज उन्हीं के देन से कृषि होती है गेवाड घाटी में भी इसी प्रकार का इक कडुवा सच है । पाली पछाओं में अंग्रेजों का डेरा हुआ करता था । कमजोर व अश्हाय लोगों से कम कराकर उन से खेत जुतवाकर अपना कम निकालते थे । जब हमारा देश आजाद हुआ गेवाड घाटी में रह रहे गेवाड़ी सब खुश हो गये । और दूसरी ख़ुशी की बात ये थी कि गेवाड घाटी के लोगों को वह हरी भरी उपजाऊ जमीं मिल गयी । बाद में तलहटी मैदानी क्षेत्र के लोगो पहाड़ में घुमने के लिए आने लगे । जब भी कोई पथिक गेवाड घाटी में आता यहां की हरियाली यहाँ का सौंदर्य को देखकर संबोधित हो जाता था । पथिकों ने यहाँ की रंग-विरंगी छटा को देखते हुए नवरंगी घाटी कहने लगे । इस प्रकार गेवाड घाटी को एक और नाम मिला नवरंगी गेवाड घाटी । अब आप ही बताओ ऐसे गेवाड घाटी जिस का इतिहास वो सौन्दर्य से भरा हो । इस गेवाड घाटी  अपनी भूमि से बिछड़ने पर कितना दुःख होता होगा ।

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